Is our breathing is reason behind both our living and dying?
The subject is that is our breathing the reason behind both our living and dying?
It is true that we cannot live without breathing. But we all will die even if we breathe, is it true?
If we talk about the spiritual age. : - In which if attention is given to the routine of sages (rishi and muni), then they used to try to increase their conscious powers before increasing their physical powers.
For which he used to meditate. Why was meditation done? What was the purpose behind meditation?
(pinterest.com) |
The reason behind sage-munio's meditation was to control his breath. By applying meditation, the speed of our breath becomes very slow. The purpose of meditation is to listen to your breath and to listen to its slowest pace.
There is a special thing to be seen in these meditative reactions and that is the slowing of the breath, so there is less intake of oxygen in the body.
So by meditation our body starts taking less oxygen. And this is also one of the reasons why sage-munio's life is long.
And it was also said by our ancestors that our breath is limited, God has given us these breaths. So control it.
It is a big secret of life that we will die either by taking breath or even by not taking it. So our death is certain.
rusting of iron |
For example, iron cannot be destroyed by any other object but air can also destroy it. Iron to rust due to air present in atmosphere. Otherwise, no one can destroy iron as easily as air can.
"The more oxygen our body uses for biological work, the sooner the life of our body cells will end and our body will grow old. Will eventually grow old and die".
And perhaps the sage-muniyo already knew about it, so those people used to meditate and control their breath, so that they could increase their lifespan.
Therefore, this discovery was already with the science of spiritual age many years ago.
क्या हमारा सांस लेना हमारे जीने और मरने दोनों के पीछे का कारण है?
विषय यह है की क्या हमरा साँस लेना ही हमरे जीने और मरने दोनों के पीछे का कारन है?
ये बात तो सत्य है की साँस लिए बिना हम जिन्दा नहीं रह सकते। लेकिन क्या अगर साँस लेंगे तब भी मर जायेगे क्या यह सत्य है?
अगर हम आध्यात्मिक युग की बात करे। :- जिसमे ऋषिमुनियो की दिनचर्या पे अगर ध्यान दिया जाये तो वो अपने भौतिक शारीरिक शक्तयो को बढ़ने से पहले अपनी चैतन्य शक्तियों को बढ़ने का प्रयत्न किया करते थे।
जिसके लिए वो ध्यान किया करते थे। ध्यान क्यों किया जाता था? क्या उद्देश्य रहा होगा ध्यान करने के पीछे?
ऋषि-मुनियो के ध्यान लगाने के पीछे का कारन था अपनी सांसो पर नियंत्रण करना। ध्यान लगाने से हमारी सांसो की गति अत्यधिक धीमी हो जाती है। ध्यान लगाने का उद्देस्य ही होता है अपनी सांसो को सुनना उसकी धीमी से धीमी गति को सुनना।
इन ध्यान की प्रतिक्रियाओं में एक विशेष चीज़ देखने को मिलती है और वो है सांसो का धीमा होना।अतः शरीर में ऑक्सीजन का अंदर लेना कम होना।
अतः ध्यान से हमरा शरीर कम ऑक्सीजन लेना चालू करदेता है। और ऋषि-मुनियो के जीवन काल लम्बा होने का यह भी एक करना है।
और हमारे पूर्वजो द्वारा यह भी कहा जाता था कि हमारी सांसे सीमित है इस्वर ने हमें ये सांसे गिन के दी हैं। अतः इस्पे नियंत्रण रखो।
यह एक बहुत बड़ा रहस्य हैं जीवन का कि सांसे लेने से भी हमरी मृत्यु होगी अथवा नहीं लेने से भी। अतः हमरी मृत्यु निश्चित हैं।
यह सब प्रकृति का खेल हैं,जिसमे जीने और मरने का एक ही कारन दिया हैं।आधुनिक विज्ञानं भी यही मानता हैं के हमरे जीने और मरने के पीछे एक ही कारन हैं और वो हैं साँस लेना।
जैसे कि लोहे को कोई अन्य वस्तु नस्ट नहीं कर सकती,उसको भी हवा ही नस्ट कर सकती हैं। हवा के कारन जंग लगने से ही लोहा गल जाता हैं। अन्यथा लोहे को कोई भी आसानी से नस्ट नहीं कर सकता जितना आसानी से हवा कर सकती हैं।
"जितना ज्यादा ऑक्सीजन हमारा शरीर जैविक कार्य के लिए प्रयोग करेगा उतनी ही जल्दी हमारी शरीर की कोशिकाओं का जीवनकाल ख़तम होता जायेगा और हमारा शरीर बूढ़ा होता जायेगा। अंततः बूढ़ा होकर मर जायेगा"।
और शायद इसके बारे में ऋषि-मुनियो को पहले से ही पता था इसलिए वो लोग ध्यान लगाया करते थे और अपनी सांसो को अपने वश में करते थे।जिससे उनकी आयु बढ़ सके।
Comments
Post a Comment