Is it not science to have self realization of a composition or creation.



In the modern era, it is also a big question whether self realization of the truth can it not be useful in discovering the truth of the universe?


Modern science depends entirely on experiments or equipment. Where there is no recognition of self-realization or self-realization of secrets.


In modern science, tools or mathematical calculations have become so effective in understanding the mysteries and there is no self realization of truth is given any place without prove. There should be evidence or prove of every discovery in modern science. No statement can be true without proof.


Mathematical formulas can be wrong. Those formulas may have a limit.
That is why in modern science one theory contradicts another theory. And so far no true theory could be given about the creation of the universe and some other theories in physics.

"If you talk about spiritual science, then self-realization is given the highest status in spiritual science".
In spiritual science, self-realization means that what the soul feels, and soul can only determine the truth or the message of the divine or its creation.

"Our soul and consciousness can only be satisfied with the ultimate truth.And the ultimate truth is the truth of this universe and the world. Which can never be wrong".



This creation or the universe is being fed by some divine power, it is not possible to be such a complex creation on its own. So being self-aware means that the divine powers that are spread in the entire universe as the ultimate consciousness which helps us to reach towards the creator or god through them. .

Only a small fraction of this entire universe is materialistic and rest of the universe rife with the same super-consciousness powers that do not doing any action it is similar as calm water. Therefore, where there is no action, it is utter darkness.

Therefore, where only the ultimate consciousness power is present or where no substance has been formed till now. So how will modern science know about that part of universe.

Its only way is spirituality, which can lead us to travel to the infinite universe. And can become the way to understand every composition deeply.


And this is where spirituality will start again, because the materialistic universe has its own limits and modern science can explore the universe up to materialistic limit.

So self realization comes from spirituality, And there is no limit to cosmic discovery..









क्या किसी रचना का आत्म बोध होना विज्ञानं नहीं है।




आधुनिक युग में यह भी यह बड़ा प्रश्न है की सत्य का आत्म बोध होना, क्या यह ब्रह्माण्ड के सत्य की खोज करने में उपयोगी नहीं हो सकता?

आधुनिक विज्ञानं पूर्णतः प्रयोगो अथवा उपकरणों पर निर्भर करता है। जहँ रहस्यों के आत्म बोध होना या आत्म बोध कराने को मान्यता नहीं दी गई है। 

आधुनिक विज्ञानं में रहस्यों को समझने में उपकरणों अथवा गणितीय गणना इतनी प्रभाव शाली हो गई है की सत्य के आत्म बोध होने को भी कोई जगह नहीं दी गई है। आधुनिक विज्ञानं में हर एक खोज का प्रमाण चाइये। प्रमाण के बिना कोई भी कथन सत्य नहीं हो सकता है।


गणितीय सूत्र गलत भी तो सकते है। हो सकता है की उन सूत्रों की अपनी एक सीमा हो।

इसीलिए आधुनिक विज्ञानं में एक सिद्धांत दूसरे सिद्धांत का खंडन करता है।और अबतक ब्रह्माण्ड की रचना के बारे में कोई भी सही सिद्धांत नहीं दिया जा सका एवं भौतिकी विज्ञानं के कुछ सिद्धांत।

अगर आध्यात्मिक विज्ञानं की बात किया जाये तो आध्यात्मिक विज्ञानं में आत्म बोध को परम दर्जा दिया गया है। आध्यात्मिक विज्ञानं में आत्म बोध का मतलब है की जो आत्मा को सत्य लगे और आत्मा को सत्य सिर्फ परमात्मा का सन्देश अथवा उसकी रचना ही लग सकता है। 


हमरी आत्मा और चेतना केवल परम सत्य से ही संतुष्ट हो सकती है। और परम सत्य ही इस ब्रह्माण्ड और  जगत का सत्य है। जो कभी गलत नहीं हो सकता।

यह सृष्टि अथवा ब्रह्माण्ड किसी दैविक शक्ति हे सलाई जा रही है, इतनी जटिल रचना अपने आप होना सम्भव नही है।अतः आत्मबोध होने का अर्थ यही है की जो शक्तियाँ परम चेतना के रूप में समस्त ब्रह्माण्ड में फैली हुई है उनके माध्यम से परमात्मा तक पहुंचना।

इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कुछ अंश ही भौतिकवादी है और शेष ब्रह्माण्ड में यही परम चेतना शक्तियाँ ही व्याप्त है जिनमे कोई क्रिया नहीं हो रही है। अतः जहाँ क्रियाये नहीं हो रही है वह घोर अंधकार है।


अतः जहाँ सिर्फ परम चेतना शक्ति व्याप्त है अथवा जहाँ किसी पदार्थ की रचना अब तक नहीं हुई है। तो उस ब्रह्माण्ड के बारे में आधुनिक विज्ञानं कैसे जान पायेगा।


इसका मात्रएक ही मार्ग है अध्यात्म, जो हमें अनंत ब्रह्माण्ड का भ्रमण करवा सकता है। और हर रचना को गहराई से समझने का मार्ग बन सकता है।


और यही से अध्यात्म की पुनः शुरुआत होगी,  क्योकि भौतिकवादी ब्रह्माण्ड की एक अपनी सीमा है और आधुनिक विज्ञानं यहींतक खोज कर सकता है।


अतः आत्म बोध अध्यात्म से ही आता है, और इसमें ब्रह्मांडीय खोज करने में कोई सीमा नहीं है।

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