My theory and imagination of humans body evolution and development.



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sperm and ovum 

Followed by our previous spiritual and modern science theories, we have seen that the human body is not in a gradual development or through evolution, but the human body is formed in human form. Modern science says that the human body is made by sequential growth or through evolution, their statement is also correct, but that sequential growth is not the way it is told.




This gradual development did not happen on earth for humans. Therefore, we did not originate from apes.




So the question is, how did that sequential development or evolution take place? So the question is, how did that sequential development take place? How did it happen when the sequential growth did not happen to the apes on the earth?




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If we put light on spiritual thoughts, it is against the gradual development of human beings. So how did this human body grow?
But it is also true that a gradual development has taken place. But how?



My aim is to understand the views or facts of spiritual and modern science and give my views.


If both the principles are understood in depth, then a new idea or principle is derived from it.
this is gospel.



"The gradual development of the human body has taken place in the mother's womb, in order to get the human form, in order to get the human form the evolution happens  through the smallest form of the organism(Sperm and ovum) , it came to this earth by taking the form of a newborn or infant as humans body".



As we all know that for the birth of human infant form, both men and women meet. The reaction of the birth of a human baby is in the womb of the woman.But how? We consider it.



one month pregnancy
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After sexual intercourse between the male and female, the male's sperm (this sperm is the basic half of the origin of the human baby) enters the female's genitalia or reproductive organ. This sperm is found in the female genitalia or reproductive organ by going to the egg or ovum (this egg or ovum is also basic half of the origin of a human baby).




This reaction is the first act of reproduction in unisexual or organisms.


The reaction of sperm and egg or ovum is very explosive. In this process, the qualities (chromosomes) of a woman or a man, together, carry forward the process of childbirth.


The combination of two souls is also mentioned in these actions.

And the activities of developing body parts go on continuously. But it is surprising that during reproduction, no action taken by female body went wrong, everything or every actin is determined by female body at fixed interval of time . When is the action to be done. And the same as a person as his baby is born.


developing baby
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For many centuries, nothing resembled a gradual development. The son of a monkey is a monkey and a human being is also a human being.


But we have seen in the woman's womb that a gradual development has taken place.



First of all, a mans and woman's sperm and egg respectively  remain like sexual organisms.


Then the two are united. And like a tree, there is a gradual development of the baby in the mother's womb.

Just as the growth of a tree is constant in the soil on the earth, similarly, the child is also nourished or nurtured by connecting with his mother through umbilical cord.


fully developed baby in womb
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And during this action, humans go through many forms. Therefore, in the same way, human form is found in the mother's womb by gradual development.


And the newborn arrives on this earth completely while fulfilling the time set in the mother's womb or body.






मेरा सिद्धांत और मानव शरीर की कल्पना और विकास।


developing baby
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हमारे पिछले आध्यात्मिक और आधुनिक विज्ञानं के सिध्यांतो के अनुशार हमने देखा की मानव का शरीर क्रमगत विकाश से नहीं बल्कि मनुष्य शरीर मनुष्य रूप में ही हुआ है। आधुनिक विज्ञानं का कहना है की मानव शरीर क्रमगत विकाश से हुआ है, उनका कथन भी सही है परन्तु वो क्रमगत विकाश जिस प्रकार से बताया गया है वैसा नहीं है।


यह क्रमगत विकाश मनुष्यो के लिए धरती पर क्रमसः नहीं हुआ। अतः हमारी उत्पत्ति वानरों के द्वारा नहीं हुई।
तो प्रश्न यह है की वह क्रमगत विकाश किस प्रकार हुआ? जब वह क्रमगत विकाश धरती पर वानरों से नहीं हुआ तो कैसे हुआ?


आध्यात्मिक विचारो पे अगर प्रकश डाला जाये तो यह मनुष्यो के क्रमगत विकाश के खिलाफ है। तो यह मनुष्य के शरीर का विकाश हुआ कैसे?
किन्तु सत्य तो यह भी है की क्रमगत विकाश हुआ है। परन्तु कैसे?



मेरा उद्देश्य आद्यात्मिक और आधुनिक विज्ञानं के विचारो अथवा तथ्यों को समझना है और अपना विचार देना है।



अगर दोनों सिध्यांतो को गहराई से समझा जाये तो उससे  एक नया विचार अथवा सिद्धांत निकल कर अत है।
यह सिद्धांत है

   "मानव शरीर का क्रमगत विकाश माँ के ग़र्व में हुआ है, मानव रूप पाने के लिए माँ के ग़र्व में जीव के सबसे छोटे रूप (शुक्राणु और डिंब)  से होकर क्रमगत विकाश कर नवजात का रूप धारण करके इस धरती पर आया।



जैसा की हम सभी जानते है की मानव शिशु रूप के जन्म के लिए स्त्री-पुरुष दोनों के मिलने से होता है। मानव शिशु का जन्म की प्रतिक्रिया स्त्री के ग़र्व में होती है।
परन्तु कैसे? हम इसपर विचार करते है।


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स्त्री-पुरुष के यौन संभोग के बाद पुरुष का शुक्राणु (यह शुक्राणु मानव शिशु के उत्पत्ति के मूल आधे हिस्से है) स्त्री के शरीर जननांग में प्रवेश करता है। यह शुक्राणु स्त्री के जननांग में डिंब ( यह डिंब भी मानव शिशु के उत्पत्ति के मिल आधे हिस्से है) से जा कर मिलते है।
यह प्रतिकिया उभयलिंगी जीवो में प्रजनन की  प्रथम  क्रिया होती है।


शुक्राणु और डिंब के मिले क्रिया अत्यंत विस्फोटक होती है। इसी क्रिया में स्त्री अथवा पुरुष के गुण (गुणसूत्रों) मिल कर बच्चे के जन्म की क्रिया को आगे बढ़ाते है।



 इन क्रिया में दो आत्माओ के मेल को भी बताया गया है।
एवं शरीर के अंगो के विकसित होने की क्रियाये निरंतर चलती रहती है। परन्तु आशचर्यजनक बात यह है की प्रजनन के दौरान कोई भी क्रियाये गलत नहीं होती हर चीज़ हर कार्य निर्धारित होता है। कब कौन सी क्रिया होनी है। और उसी मनुष्य जैसा उसका शिशु जन्म लेता है।



कई सदियों से इनमे क्रमगत विकाश जैसा कुछ देखने को नहीं मिला। वानर का पुत्र वानर हे हुआ है और मनुष्य का मनुष्य ही।

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किन्तु हमने स्त्री के ग़र्व में यह देखा है की क्रमगत विकाश हुआ है।
सर्व प्रथम स्त्री पुरुष के शुक्राणु और डिंब लिंगीय जीवो की तरह ही रहते है।

फिर दोनों मिलकर एक होते है। और एक वृक्ष की तरह माँ के ग़र्व में शिशु का क्रमगत विकाश होता है।
जिस प्रकार एक वृक्ष का विकाश धरती पर मिट्टि में स्थिर  रहकर होता है उसी प्रकार शिशु का भी पालन पोषण अपनी माँ के ग़र्व से जुड़ कर होता है।

और इस क्रिया के दौरान मानव कई रूपों से होकर गुजरता है। अतः निरंतर इसी प्रकार माँ के ग़र्व में क्रमगत विकाश से मानव रूप मिलता है।

और माँ के ग़र्व में नर्धारित समय कल को पूरा करते हुए नवजात इस धरती पूर्ण विकशित हो कर आता है।

Comments

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