Corona(COVID19): - it's life, cause of birth and motive of birth.


As we all know that every coin has two sides, every story can be understood in two ways. Today, let's talk about the epidemic(COVID19) spread all over the world.

Let's talk about the birth of this epidemic why its birth is important, about its purpose, and its life. Today, we try to understand a fictionalized view along with scientism.

Whenever the situation of destruction has arisen in this creation, then a new beginning has taken place. Hence destruction is a new beginning.


It would not be wrong to say that the human being is the originator of every epidemic. The fall of humans on nature or other creations creates the cause of the birth of such an epidemic. Today this epidemic is proving to be disastrous for human civilization, has become the biggest threat to the entire human race.If its outbreak cannot be stopped, then it will end the entire human civilization. However, nature will not give such a big punishment to human civilization.

Life or purpose of the epidemic: -


Having a birth or being born has a purpose hidden behind it. Along with the purpose, they also have a lifetime of their own, which they complete and destroy themselves.
This epidemic has just been born, so it is in the form of a child, its life is still remaining. It is difficult to say how much remains, but this epidemic will be destroyed on its own after fulfilling its purpose.

Now what is the purpose of this epidemic: -

1 Reshape the whole world. Clean the nature again like new.
2 The most sensible creation of creation is to teach human beings and to force them to follow the rules of nature.
3 To give this message is only nature or laws of nature is supreme.

This nature is for everyone, all creations are necessary for this creation. That is why human civilization should follow the rules of nature and take care of other creations. Otherwise, playing with nature will only lead to the end of human civilization.



कोरोना :-  इसका जीवन, जन्म का कारण और जन्म का मकसद एवं उद्देश्य।

जैसा की हम सभी जानते है हर सिक्के के दो पहलू होते है, हर कहानी को दो तरीको से समझा जा सकता है।  आज बात करते है सम्पूर्ण विश्व में फैली महामारी के बारे  में। 
बात करते है इस महामारी के जन्म के बारे में इसके उद्देश्य के बारे में, और इसके  जीवन के बारे में। आज हम वैज्ञानिकता के साथ-साथ एक काल्पनिक दृश्य को समझने का प्रयत्न करते है। 
जब-जब इस सृष्टि में विनाश की इस्तिथि पैदा हुई है तब-तब एक नई शुरुआत हुई है। अतः विनाश एक नई शुरुआत है।

ये कहना गलत नहीं होगा की हर महामारी का जन्मदाता मनुष्य स्वयं है। प्रकृति अथवा सृस्टि के अन्य रचनाओं पर मानवो द्वारा किये जा रहे पतन ही ऐसे महामारी के जन्म लेने का कारन बनते है। आज यह महामारी मानव सभ्यता के लिए विनाशकारी साबित होती जा ही है , सम्पूर्ण मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चूका है। अगर इसका प्रकोप नहीं रोका जा सकेगा तो यह पूरी मानव सभ्यता को ख़त्म कर देगा। हलाकि प्रकृति मानव सभ्यता को इतनी भी बड़ी सजा नहीं देगी।

महामारी का जीवनकाल:-
किसी का जन्म लेना अथवा पैदा होना इसके पीछे एक उद्देश्य छुपा होता है।उद्देश्य के साथ-साथ इनका अपना भी एक जीवनकाल होता है जिसे पूर्ण कर वह खुद ने नष्ट हो जाता है। इस महामारी का तो अभी जन्म हुआ है तो यह एक बालक के रूप में  है इसका जीवनकाल अभी शेष है।कितना शेष है यह कह पाना कठिन है।किन्तु यह महामारी अपना उद्देश्य पूरा करने के बाद खुद ही नष्ट हो जाएगी।

अब इस महामारी का उद्देस्य क्या है:-
१ सम्पूर्ण सृष्टि को पुनः नया रूप देना। प्रकृति को पुनः नया जैसा स्वच्छ करना।
२ सृस्टि की सबसे समझदार रचना मानव को सीख़ देना उन्हें प्रकृति के नियमो को पालन करने के लिए बाध्य करना।
३ प्रकृति अथवा प्रकृति के नियम ही श्रेष्ठ है यह सन्देश देना।

यह प्रकृति सभी के लिए है , सारी रचनाये इस सृष्टि के लिए आवयशक है। इसीलिए मानव सभ्यता को प्रकृति के नियमो का पालन करना चाइये और अन्य रचनाओं का ख्याल रखना चाइये।अन्यथा प्रकृति के साथ खिलवाड़ ही मानव सभ्यता के अंत होने का कारण बनेगी।

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